Thursday, July 8, 2021

उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 79 [ आहंग एक - नाम दो [भाग -2]

 उर्दू बह्र पर एक बातचीत : क़िस्त 79 [  आहंग एक - नाम दो   [भाग -2]

पिछली क़िस्त 78 में मैने इसी विषय पर बातचीत की थी कि कैसे एक बहर की आहंग तो एक है और नाम दो हैं
और वो बह्र थी 
1212--    -1212--     -1212---1212-           यानी 
मुफ़ाइलुन--मुफ़ाइलुन--फ़ाइलुन--मुफ़ाइलुन

और इस बह्र की मुज़ाइफ़ शकल [यानी 16-रुक्नी बह्र ] भी अज रू-ए-अरूज़ मुमकिन है ।
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आज हम ऐसी ही दूसरी बह्र पर भी बातचीत करेंगे। और वो बह्र है 
22---22---22---22 
और इस बह्र की भी मुज़ाइफ़ शकल [ यानी 16-रुक्नी बह्र ]भी  मुमकिन है । देखिए कैसे?

[1] यह बह्र तो आप पहचानते होंगे 
212------212-------212--------212- 

फ़ाइलुन--फ़ाइलुन----फ़ाइलुन----फ़ाइलुन--
बह्र-ए-मुतदारिक मुसम्मन सालिम
अगर आप इस के सभी मुक़ाम पर ख़ब्न का ज़िहाफ़ लगा दें तो [ चूँकि ख़ब्न एक आम ज़िहाफ़ है तो 
शे’र के किसी मुक़ाम पर लगाया जा सकता है सो लगा दिया ] तो हासिल होगा-
112-------112------112---112 यानी 
फ़इलुन --फ़इलुन --फ़इलुन --फ़इलुन 
       यानी  सालिम बह्र की एक मुज़ाहिफ़ शकल 
बह्र-ए- मुतदारिक मख़्बून मुसम्मन 
तस्कीन-ए-औसत और तख़्नीक़ के अमल के बारे में क़िस्त--- में चर्चा कर चुका हूँ [ आप वहाँ देख सकते हैं। फिर भी संक्षेप में
यहाँ लिख दे रहा हूँ 
तस्कीन-ए-औसत = किसी ’एकल मुज़ाहिफ़ रुक्न" में 3-मुतहर्रिक हर्फ़ [ जैसा कि ऊपर वाली बह्र  में है ] में दो 1 , 1 एक साथ 
[ अगल बगल ,आमने सामने ,Adjacent ] आ जाए तो 1 1  मिल कर -2- हो जायेगा।
तस्कीन-ए-औसत  का अमल   मुज़ाहिफ़ रुक्न "पर ही होता है । सालिम रुक्न पर कभी नहीं होता। और शर्त यह भी कि
इनके अमल से बह्र बदलनी नही चाहिए यानी इसका अमल करते करते मूल बह्र की शकल ऐसी न हो जाए कि पहले से किसी 
मान्य और प्रचलित बह्र से मेल खा जाए । यह एक बन्दिश है ।
अगर अब इस बह्र पर ’तस्कीन-ए-औसत का अमल कर दिया जाए तो क्या हासिल होगा ? हासिल होगा
22--22---22---22---    [क]
 इस बह्र की भी मुसम्मन मुज़ाइफ़ शकल यानी 16-रुक्नी बह्र भी मुमकिन है ।और लोग उस बह्र में भी शायरी करते है ।
हालाँकि इस बह्र के और भी मुतबादिल औज़ान [ आपस में बदले जाने वाले वज़न ] बरामद होंगे या हो सकते हैं मगर यहाँ मैने मात्र एक शकल
ही लिया है ।विषय की सुगमता के लिए उन तमाम औज़ान का ज़िक्र यहाँ नहीं कर रहा हूँ। 
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अच्छा अब एक दूसरी बह्र देखते हैं।
[2 आप यह बह्र भी पहचानते होंगे 
21---121--121--122 

[ बह्र-ए-मुतक़ारिब असरम मक़्बूज़ मक़्बूज सालिम अल आख़िर]
यानी यह भी एक मुज़ाहिफ़ शकल है ्बह्र-ए-मुतक़ारिब का।
अब अगर इस बह्र पर  ’तख़्नीक़ ’ का अमल कर दिया जाए तो क्या हासिल होगा ?
तख़नीक़ का अमल बिल्कुल तस्कीन के अमल जैसा होता है ,बन्दिश भी वही होती है । फ़र्क सिर्फ़ इतना है कि तस्कीन का अमल --जब एकल रुक्न में
3- मुतहर्रिक साथ आते है तब । तख़्नीक के अमल तब होता है जब दो Adjacent रुक्न में ऐसी स्थिति [ यानी आ जाए जैसा कि ऊपर के बह्र में आ गया है ।
] में दो 1 , 1 एक साथ [ अगल बगल ,आमने सामने ,Adjacent ] आ जाए तो 1 1  मिल कर -2- हो जायेगा।
इस अमल से 21--121--121--12 का हासिल होगा
22--22---22--22---[ख]
इस बहे की भी "मुसम्मन मुज़ाइफ़" यानी 16-रुक्नी बह्र मुमकिन है ।लोग उसमे शायरी भी करते है ।
हालाँकि इस बह्र के और भी मुतबादिल औज़ान [ आपस में बदले जाने वाले वज़न ] बरामद होंगे या हो सकते हैं मगर यहाँ मैने मात्र एक शकल
ही लिया है ।विषय की सुगमता के लिए उन तमाम औज़ान का ज़िक्र यहाँ नहीं कर रहा हूँ। 
अगर आप ध्यान से देखें तो [क] और [ख] दोनो की शकल एक आहंग एक -परन्तु नाम दो
एक [क] मुतदारिक से हासिल हुआ
दूसरा [ ख] मुतक़ारिब से हासिल हुआ
चलते चलते एक सवाल
अगर आप से कोई मात्र यह शकल दिखा कर पूछे कि 22---22----22---22  कौन सी बह्र है या इसका क्या नाम है ? तो आप क्या जवाब देंगे?
सादर

-आनन्द.पाठक-


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